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आज एक बार फिर कुछ लिखने को दिल चाह रहा है ,काफी समय से कुछ लिखा नहीं , और आप लोग मुझे भूल ना जाएँ इस डर से कुछ ना कुछ पोस्ट करना पड़ेगा .
अब विकट प्रश्न है कि क्या लिखूं ? अपनी सीमित क्षमताओं के साथ कुछ लिखना मेरे लिए कभी आसान नहीं रहा है. न मै संदीप जी और सूर्य जी कि तरह ग़ज़ल लिख पाता हूँ , ना ही राज भाई और आल राउंडअर जी कि तरह हास्य व्यंग , ना मै संतोष जी कि तरह से से मूरख मंच कि रचना कर सकता हूँ , और ना ही निशाजी , अलका जी , वाहिद भाई, तिम्सी जी , तमन्ना जी , सुमन जी , सत्य जी , मनोरंजन जी , जवाहर भाई , पियूष भाई रौशनी जी , परवीन जी , दिव्या जी , विनीता जी , साधना जी , राजेश सर , अमिता जी , राजेंद्र भाई , अमर भाई , तुफैल भाई, शशि जी बाजपेई सर, शाही सर और इन्ही के तरह बहुत सारे ( क्षमा चाहता हूँ उनसे जिनका भी नाम छूट गया है ) कि तरह कुशल लेखकों में से हूँ .
इस बार केवल आपके सामने एक छोटी सी बात रखना चाहता हूँ जो कल ही पढ़ी .
एक बार किसी विद्वान् से एक बूढ़ी औरत ने पूछा कि क्या इश्वर सच में होता है ? उस विद्वान् ने कहा कि माई आप क्या करती हो ? उसने कहा कि मै तो दिन भर घर में अपना चरखा काटती हूँ और घर के बाकि काम करती हूँ , और मेरे पाती खेती करते हैं . उस विद्वान ने कहा कि माई क्या ऐसा भी कभी हुआ है कि आप का चरखा बिना आपके चलाये चला हो , या कि बिना किसी के चलाये चला हो ? उसने कहा ऐसा कैसे हो सकता है कि वो बिना किसी के चलाये चल जाये? ऐसा तो संभव ही नहीं है. विद्वान् ने फिर कहा कि माई अगर आपका चरखा बिना किसी के चलाये नहीं चल सकता तो फिर ये पूरी सृष्टि किसी के बिना चलाये कैसे चल सकती है ? और जो इस पूरी सृष्टि को चला रहा है वही इसका बनाने वाला भी है और उसे ही इश्वर कहते हैं.
उसी तरह किसी और ने उसी विद्वान् से पूछा कि आदमी मजबूर है या सक्षम? उन्होंने ने कहा कि अपना एक पैर उठाओ, उसने उठा दिया, उन्होंने कहा कि अब अपना दूसरा पैर भी उठाओ, उस व्यक्ति ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है? मै एक साथ दोनों पैर कैसे उठा सकता हूँ? तब उस विद्वान् ने कहा कि इंसान ऐसा ही है, ना पूरी तरह से मजबूर और ना ही पूरी तरह से सक्षम . उसे इश्वर ने एक हद तक सक्षम बनाया है और उसे पूरी तरह से छूट भी नहीं है . उसको इश्वर ने सही गलत को समझने कि शक्ति दी है और अब उसपर निर्भर करता है कि वो सही और गलत को समझ कर अपने कर्म को करे.
इश्वर से प्रार्थना है कि हमें सही और गलत को समझने कि शक्ति दे, हम जात -पात , धर्म, क्षेत्र , प्रान्त से ऊपर उठ कर केवल और केवल भारतीय बने. आने वाला 26 जनवरी हमारे लिए केवल एक छुट्टी मनाने का दिन ना होकर एक ऐसा दिन हो जो हम्मे एक नयी उर्जा फूक दे , एक नयी उमंग दे , जिसमे हम प्रण करें कि हम अपने को बांटने वाली हर शक्ति का विरोध करेंगे और उन्हें कामयाब नहीं होने देंगे . देश सर्वोपरि है और उससे बढ़ कर कुछ नहीं . बस इतना ही कहना चाहूँगा . आशा है कि आप सबका समर्थन और प्यार सदा कि भांति इस बार भी इस अबोध को मिलेगा.
जय हिंद.
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