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मित्रो कुछ दिन पहले अपने एक मित्र के यहाँ जाना हुआ, बात ही बात में उन्होंने एक बात कही कि ” यार मै तो ठहरा धार्मिक आदमी, मै अपने ऐसी बातो से दूर ही रहता हूँ, “. बात आई और गयी, पर मेरे मन में धार्मिक होने को लेकर कुछ …………….
मैंने सोचा कि धार्मिक होने से क्या तात्पर्य है, कौन होता है धार्मिक – अलग अलग परिभाषा मिली (नेट पर), पर सामान्य परिभाषा ये मिली कि जो व्यक्ति इश्वर में विश्वास करे, उसकी उपासना करे, पूजा पाठ करे, अच्छे कर्म करे, बुराई से बचे आदि आदि……
मै सोचने लगा कि आखिर हम धार्मिक होते क्यों हैं? क्या चीज़ है जो हमें धार्मिक बनाती है? जहाँ तक मेरी समझ है सामान्यतः लोग धार्मिक इस लिए होते हैं कि उनके साथ सदा सब कुछ अच्छा रहे, और कभी बुरा न हो.
अधिकतर लोग स्वर्ग कि चाह में और नरक से बचना भी चाहते हैं और इसी कारण अच्छे कर्म करते हैं और धार्मिक रास्ता अपनाते हैं.
मै इस विषय पर थोडा और सोचा तो लगा कि धार्मिक होने के पीछे कहीं न कहीं लेन – देन वाला मामला लगता है, हम इश्वर को मानते हैं पर या तो उससे डरते हैं या उससे आशा रखते हैं कि हमें ये दे, वो दो. हमें लगता है कि मिलेगा तो केवल इश्वर से और इसलिए लालच वश, या के अगर हमने ये नहीं किया तो ……..इश्वर से डर कर अपने आपको धार्मिक बनाते हैं, पर क्या सच में ये धार्मिक होना है? कई लोभ और भय से किया गया कार्य धर्म है और वो व्यकित को धार्मिक बना देता है?
क्या ऐसा व्यक्ति सच में धार्मिक होता है जो ………………….?
मुझे लगता है कि इश्वर कि पूजा इसलिए होना चाहिए क्योंकि उसने इस पूरी सृष्टि कि रचना कि है, वो – वो है जैसा कोई नहीं है, वो वो है जैसा कोई नहीं था, वो वो है जैसा कोई नहीं होगा, वो वो है जिसने हमें जीवन दिया है और वो वो है जो बदले में हमसे कुछ नहीं चाहता है, जो कुछ हमें मिला है वो उसकी देन है, दया का फल है है, हमारी सांस भी चल रही है तो उसकी दया के कारण. ये सारी बातें उसके पूजा के लिए काफी है, ये सारी बातें और इसके तरह कि अनगिनत बातें ……….., न कि केवल उससे डर कर या लालच के कारण ……………..
धार्मिक होने के लिए लेन देन का रिश्ता, मेरी समझ से तो सही नहीं है, ये तो सौदा है न कि ………….
आप क्या कहते हैं?
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