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आत्म – मंथन

mere vichar
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Grandma-Moses1

आज  आपको  एक  बार  और एक  कहानी  सुनाने  जारहा  हूँ  जो  कि  पिछले   दिनों  एक  पर्सोनालिटी  डेवेलोपमेंट  प्रोग्राम  के  बीच  सुनने  को  मिली. हो  सकता  है  कि  आपमें  से  भी  कुछ  लोगो  ने  इसे  पहले  सुना  या  पढ़ा  हो.

 

ये  कहानी  है  ग्रांड माँ   मोस्से  कि , और  अगर  आपने  उनके  बारे  में  नहीं  सुना  हो  तो  इंटरनेट  पर  केवल  उनका  नाम   डाल  कर  देखें , अनगिनत  वेब  साईट  पर  आपको  उनका  नाम  …………………

 

उनका  जन्म  १८  सितम्बर  1860 को  अमेरिका   के  न्यू   योर्क  के   एक  गाँव  ग्रीनविच  में  हुआ  था . बचपन  में  उन्हें  पेंटिंग  का  बहुत  शौक   था  पर  उनके  माता पिता   ने  उनकी  बहुत  ही  कम  आयु  में  शादी  करा  दी  और  वो  अपने   पति  के  साथ  खेतो  में  काम  करने  लगी .

 

समय  बीतता  गया  और  जब  वो  70 साल  कि  हुई  तो  उनके  पति  का  देहांत  हो  गया , उसके  बाद  भी  वो  अपने  बेटों  और  उनके  बेटों   और  उनके  ……….., के  साथ खेतो मे  काम  करती  रही . तब  तक  वो  लगभग  68 बच्चो  कि  माँ / दादी /पर  दादी  बन  चुकी  थी . इस  आयु  में  आ  कर  वो  खेतो  में  काम  करने  के  लायक  नहीं  रह  पायी  थी  और  फिर  उन्होंने  एक  बार  फिर  से  अपने  बचपन  के  प्यार     यानी  पेंटिंग  को  अपने  जीवन  का  हिस्सा  बनाया .

 

उनके  प्रारंभिक  चित्र  लोगों  को  केवल  उपहार  देने  के   काम  आते  थे , और खुद  उनके  अनुसार  उन्होंने  अपने  पोस्ट  मैन  को  केक  बना  कर  गिफ्ट  देने  से  आसान  ये  समझा  कि  वो  चित्र  बना  कर  उसे  ………., उनके  प्रारंभिक  चित्र  केवल  गाँव  कि  जीवनी  को  और  वहां  के  प्राक्रतिक  सुन्दरता  को  दर्शाते  थे .

 

उनकी  शुरूआती  पेंटिंग   केवल  2-3 डॉलर  में  बिका  करती  थी . उनके  गाँव  के  जनरल   स्टोर  वाले  ने  उनकी  पेंटिंग्स  से  अपनी  दुकान  को  सजा  रखा  था , एक  दिन  एक  आर्ट  कलेक्टर  और  इंजिनीयर  लौईस  कल्दोर  का  उधर  से  गुजरना  हुआ  और  उसने  ये  पैनितिंग्स  देखि  और  साड़ी  कि  साड़ी  खरीद  ली , उसके  बाद  वो  ग्रांड माँ  मोसेस  के  घर  गया  और  उसने  १०  पेंटिंग्स  और  कह्रीदे , और   साडी  पेंटिंग्स  अपने  साथ   न्यू  योर्क  ले  गया .

 

कुछ  समय  के  बाद , ग्रांड माँ  मोसेस  पेंटिंग्स  कि  दुनिया  में  अनजान  नहीं  रही  और  उनकी  पेंटिंग्स  आर्ट  गेल रीज   में  लगने  लगी . उनकी  केवल  एक  पेंटिंग    इतने  में  बिकने  लगी  जितना   उन्होंने  अब  तक  के  पूरे  जीवन  में  सपरविआर    काम  कर  के  नहीं  कमाया  था . उन्होंने  अपने  जीवन     के  आखरी  20 साल  में  लगभग  3600 पेंटिंग्स  बनायी  और  उनके  अंतिम  10 वर्ष  में  उनकी  हर पेंटिंग  1 लाख  डालर  कि  बिक  रही  थी . 2006 में  उनकी  एक  पेंटिंग  “sugaring off” 1.2 मिल्लियन   डालर   में  बिकी .

 

इस  पूरी  रचना  का  अभिप्राय  ये  था  कि  हमें  जीवन   में   वो   करना  चाहिए  जो  हम  पसंद  करते  हैं . हम  सब  में  एक  छिपी  हुई  नैसर्गिक  प्रतिभा  होती  है  जिस  से  हम   अक्सर  अनजान  रहते  हैं . जीवन  में  हम  अक्सर  काम  दूसरो  के  लिए  करते  हैं , माँ  पिता  जो  चाहते  हैं  वो  बन  जाते  हैं , लोगो  कि  अपेक्छायों  को  पूरा करने में हम अपने अन्दर झांक कर देखते ही नहीं हमें चाहिए कि हम अपनी पसंद को ही अपना   कर्म क्षेत्र बनाये  और अगर हम ऐसा करेंगे तो हमारा काम काम न हो कर हमारी पसंद बन जायेगा और फिर उसे करने में हमें आनंद आएगा और अपने आप जेवण में सफलता के शिखर पर …………..

 

अपने अन्दर कि छिपी नैसर्गिक प्रतिभा को हमें स्वयं ही पहचानना होगा  क्योंकि हमें हमसे अच्छा  और  कौन  जान  सकता  है? उसे  पहचानिए  और  फिर  उसे  निखारने  के  लिए  जो भी  आवश्यक  प्रयास  हो , वो  करें , और  फिर  जीवन  में  अंतर  देखें  . ज़रूरी  नहीं  है  कि  आप  को  आर्थिक  रूप  से  उतना  ही  लाभ   मिले  जो  आप  को  अपने  वर्तमान  में  मिल  रहा  है  पर  कम  से  कम  आप  वो  तो  कर  रहे  होंगे  जो  आपको  पसंद  है .

 

पर  क्या  हम  ऐसा  कर  सकते  हैं  क्योंकि  बदलाव  सदा  ही  ………….., क्या  हम ?

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