ख़ामोशी की आवाज़
आज शाम, अपने कमरे में बैठा जगजीत सिंह जी को सुन रहा था, जिसमे उनकी खूबसूरत और मखमली आवाज़ में उनकी एक ग़ज़ल चारो ओर फ़ैल रही थी
ख़ामोशी खुद अपनी सदा हो ऐसा भी हो सकता है
सन्नाटा भी बोल रहा हो, ऐसा भी हो सकता है
ध्यान कहीं और चला गया की ख़ामोशी की भी अपनी एक सदा होती है, और सच में, ख़ामोशी अपने आप में एक बड़ी ही खूबसूरत चीज़ है.
ख़ामोशी यानि निःशब्दता / मौनता, साइलेंस. ये शब्द हम बचपन से सुनते आयें हैं, जब हम स्कूल में पढ़ते थे और हमारे टीचर्स हमें साइलेंस ……….., या की घर में जब हम शोर मचाते थे हमें डांट के साथ चुपचाप रहने की ………..,
ख़ामोशी को अक्सर हम अज्ञानता या निष्क्रियता से जोड़ देते हैं जैसा की प्रसिद्ध बोक्सर मुहम्मद अली ने कहा था की ” ख़ामोशी सोने की भांति है अगर हमें किसी बात का उत्तर ना पता हो और मुझे लगता है की बहुत सारे लोग ऐसा ही करते हैं” पर वास्तव में ख़ामोशी इससे कहीं ज्यादा है, कहीं बढ़ कर है. मैंने कहाँ पढ़ा था की voice is silver but silence is gold. ख़ामोशी अपने आप में एक बड़ा हथियार है और अगर हम इतिहास के पन्नो को पलट कर देखें तो पाएंगे की अक्सर महा पुरुषो और ज्ञानिओं ने, जिनमे वैज्ञानिक, दार्शनिक, कलाकार, योगी आदि हैं, उन्होंने इस हथियार को भली भांति समझा और इसका उपयोग अपने जीवन में किया और अतुलनीय सफलता पायी.
प्राचीन काल में लोग मौनता/ख़ामोशी के महत्व को समझते थे और इसको अपने जीवन शैली का एक हिस्सा बनाते थे. वो प्रकृति की आवाज़ को सुनने के लिए अपनी आवाज़ को बंद रखते थे चाहे कुछ समय के लिए ही क्यों ना हो. आज शहरो में तो शायद ऐसा संभव ना हो पर अगर हम अपने गाँव में जाएँ, जहाँ अभी तक शहरो जैसा कोलाहल नहीं है तो हम पाएंगे की ख़ामोशी की आवाज़ क्या होती है. हवा की सरसराहट में, पत्तों के हिलने में, पानी की कलकल में, चिड़ियों की चहचहाट में……., यहाँ तक की अपनी साँसों और दिल की धड़कन में ……
आज हमारे चारो ओर इतना ज्यादा शोर है की हम ऐसे ही सुनने की शक्ति से कमज़ोर होते जा रहे हैं, ना केवल सुनने बल्कि….., हमारी सारी इन्द्रियों को अपनी क्षमता से अधिक काम करना पड़ रहा है और इसके परिणाम स्वरुप ना जाने कितनी बीमारियाँ…., इसलिए आवश्यक है की हम हम ख़ामोशी के महत्त्व को समझे, आज हम जिस समाज में हैं उसमे खामोश बैठना या रहना अपने आप में एक कठिन काम है बल्कि खामोश वातावरण पाना ही बड़ा कठिन होगा पर फिर भी …..
अगर हम ये कहते हैं की हम खामोश हैं तो इसका मतलब केवल ये नहीं है की केवल हमारी ज़बान बंद हो बलके होना ये चाहिए की इससे हमारी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक हर रूप में शांति और स्थिरता हो, सब शांत और चुप हो. अगर मस्तिष्क में हजारों चिंताए हो तो कहाँ से कोई शांत या …………….,
हमें प्रयास करना होगा की प्रतिदिन कुछ समय के लिए हम मौन और शांत बैठने का प्रयास करें और अपने चारों ओर की ख़ामोशी को सुने, अपने अन्दर को आवाज़ को सुने .सच तो ये है की ख़ामोशी के गर्भ में ही शांति और सफलता की कुंजी है.
आशा है की आप एक बार अवश्य ही ख़ामोशी की खूबसूरत सदा को सुनने की कोशिश तो ज़रूर करेंगे ….
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