ख्वाब
देख लो ख्वाब मगर ख्वाब का चर्चा ना करो
लोग जल जायेंगे सूरज की तमन्ना ना करो
वक़्त का क्या है किसी पल भी बदल सकता है
हो सके तुम से तो तुम मुझ पे भरोसा ना करो
किरचियाँ टूटे हुए अक्स की चुभ जाएँगी
और कुछ रोज़ अभी आइना देखा ना करो
अजनबी लगने लगे खुद तुम्हे अपना ही वजूद
अपने दिन रात को इतना भी अकेला ना करो
ख्वाब बच्चों के खिलौनों की तरह होते हैं
ख्वाब देखा ना करो, ख्वाब दिखाया ना करो
बेख्याली में कभी उंगलियाँ जल जाएँगी
राख गुज़रे हुए लम्हों की कुरेदा ना करो
मोम के रिश्ते हैं गर्मी से पिघल जायेंगे
धुप के शहर में “आजेर” ये तमाशा ना करो
कफील आजेर की इस खूबसूरत ग़ज़ल को आपके साथ बाँट रहा हूँ, खुद अपने आपको इस लायक नहीं पाता की कोई ऐसी कविता या ग़ज़ल लिखों जो इस मंच की स्तर की हो इस लिए अगर कभी कोई कविता या ग़ज़ल अच्छी लगती है तो आपके साथ ……, आशा है की आपको पसंद आएगी.
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