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आज डयूटी से लौटने के बाद पड़ोस के घर में बहुत चहल पहल देख कर मैंने माँ से प्रश्न किया की क्या बात है , उधर नए नए चेहरे नज़र आ रहे हैं ?
माँ ने उत्तर दिया की वैशाली को देखने के लिए लड़के वाले आये हैं.
दिल एक बार फिर से करह उठा , क्या इस बार भी?
पिछले कई महीनो से देख रहा था की लोग ऐसे ही वैशाली को देखने आते थे और फिर लौट जाते थे ये कहते हुए की हम आपको जल्द बताएँगे पर वैशाली के माता पिता उनके उस उत्तर की प्रतीक्षा करते रहते थे जो की कभी आता ही नहीं था .
क्या कमी थी वैशाली में ? पढ़ी लिखी , सलीके वाली , घर का हर काम –काज जान्ने वाली , बड़ों का आदर सत्कार करने वाली , कभी किसी से नाराज़ ना होने वाली , सारे गुण तो थे उसमे केवल ——— —– केवल ये की वो थोड़ी सांवली थी या ये कहें की उसका रंग गोरा नहीं था. केवल इस बात ने उसके सारे गुणों पर ग्रहण लगा दिया था .
मै हर बार से इस बात को देख रहा था , हर बार सोचता था की क्या केवल गोरा रंग ही सब कुछ है ? क्या इतने सारे गुणों को जो जीवन में उसके सदा काम आयेंगे , वो कोई महत्व नहीं रखते ? रंग रूप तो केवल चाँद दिन की बात है , वास्तव में तो उसकी सीरत ही है जो गृहस्थी में काम आती है , फिर क्यों …….. क्यों ?
बीच में एक बार मैंने सुना था की लड़के वालो ने वैशाली को पसंद कर लिया था लेकिन दहेज़ में जो कुछ माँगा , वो उस के माता पिता की हैसियत के परे था .
मन फिर से एक बार अशांत हो गया , इस बार क्या होगा ?
यहाँ पर अपनी कायरता भी मुझे कचोटती रहती है , आखिर मै खुद क्यों नहीं माँ को वैशाली के सारे गुणों को गिना कर उनसे अपने लिए मांग लेता , कहीं ना कैन मेरी कायरता , और दोगली सोच थी , मै जानता था की वैशाली हर दृष्टि से एक बहुत अच्छी जीवन साथी साबित होगी फिर मै खुद क्यों नहीं …………
मै अपने कमरे में जा कर बैठ गया , शाम में पता चला की हर बार के तरह इस बार भी …….…. और मै भी हर बार की तरह एक बार फिर …………
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