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वतने पाक के बाज़र्फ़ निदार रहबरों
कौम ओ मिल्लत के तरफ दार हसीं चारा गरो
ज़ुल्म कश्मीर के मजलूमों पे जब होता है
इन का ग़म देख कर तुम लोगों का दिल रोता है?
तुम ने इन लोगों की बेलोस हिमायत की है?
इन की उजड़ी हुई नस्लों से मुहब्बत की है?
ये इनायत ये करम क्यों है ज़रा ये भी कहो?
तुम को इन लोगों का ग़म क्यों है ज़रा ये भी कहो?
क्या इन्हें देख के तुम वाकई रंजीदा हो?
इन की खुशियों के लिए वाकई संजीदा हो?
तुम जो हो कौम के हमदर्द तो इतना बतलाओ?
एक मुद्दत की जो उलझन है अब उस को सुलझाओ?
रूह की जिस को नया ज़ख़्म मिला है तुम से
उसी शायर का कलम पूछ रहा है तुम से
आँख इस पर उठाना ही जवान मरदी है
तुम को सरहद के इधर वालों से हमदर्दी है?
और उधर साहिबे ईमान नहीं रहते हैं?
क्या कराची में मुस्लमान नहीं रहते हैं ?
तुम ने कश्मीर के जलते हुए घर देखे हैं
नैज़ये हिंद पे लटके हुए सर देखे हैं
अपने घर का तुम्हें माहोल दिखाई न दिया?
अपने कूचे का तुम्हें शोर सुनाये न दिया?
अपनी बस्ती की तबाही नहीं देखि तुम ने ?
उन फिजाओं की सियाही नहीं देखि तुमने ?
मस्जिदों में भी जहाँ कतल किया जाता है
भाइयों का भी जहाँ खून किया जाता है
लूट लेता है जहा भाई बहन की इस्मत
और पामाल जहाँ होती है मां की अज़मत
एक मुद्दत से मुसाफिर का लहू बहता है
अब भी सड़कों पे मुहाजिर का लहू बहता है
मारे जाते हैं वहां जो मेरे अजदाद हैं वो
मादरे हिंद की बिछड़ी हुई औलाद हैं वो
कौन कहता है मुसलमानों के ग़म ख्वार हो तुम?
दुश्मने अमन हो इस्लाम के ग़द्दार हो तुम
तुम को कश्मीर के मजलूमों से हमदर्दी नहीं
किसी बेवा किसी मासूम से हमदर्दी नहीं
तुम में हमदर्दी का जज्बा जो ज़रा सा होता
तो कराची में कोई जिस्म न ज़ख्मीं होता
लाश की ढेर पे बुनियादे हुकूमत न रखो
अब भी है वक़त के ना पाक इरादों से बचो
मशवरा यह है के पहले वहीँ इमदाद करो
और कराची की गली कूचों को आबाद करो
जब वहां प्यार के सूरज का उजाला हो जाए
और हर शख्स तुम्हें चाहने वाला हो जाए
फिर किसी की भी तरफ चश्मे इनायत करना
फिर तुम्हें हक है किसी की भी हिमायत करना
और गर अपने यहाँ तुम ने सितम कम ना किया
अपनी धरती पे जो खुर्शीद को शबनम ना किया
तो कभी चैन से तुम भी नहीं रह पाओगे
अपनी भड़की हुई आग में जल जाओगे
वक़त की आग तुम्हारा भी सुकून लूटेगा
सर पे भी तुम लोगों के कहरे खुदा टूटेगा !!!!!!!
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