हम आखिर हैं क्या?
आजसे कुछ दिन पहले एक टीवी चैनेल ने एक समाचार प्रसारित किया था जिसमे दिखाया गया था की दिल्ली में फूटपाथ पर एक स्त्री ने बच्चे को जनम दिया और वही पर उसकी मौत हो गयी, उसकी लाश कई घंटे तक वही पड़ी रही और लोग उसके पास से गुजरते रहे, बच्चा रोता रहा.
ये समाचार सुन कर मै सोचने पर विवश हो गया,की आखिर हम ” भगवान् की बने हुई सर्वोत्तम कृति, आखिर हम है क्या?” क्या हम वास्तव में इंसान है, या हम जानवर से भी गए गुज़रे हैं, हम कितने संवेदना हीन हो गयी हैं, अगर हमारे बगल वाले घर में डाका पर रहा हो तो हम उसकी मदद को जाने के बजाये भगवान् का धन्यवाद करते हैं की हमारा घर बच गया, किसी जगह कोई आपस में लड़ रहा हो तो हम सामने से गुज़र जाते हैं की कौन इस लफड़े में पड़े, सड़क पर कहीं एक्सिडेंट हो जाए तो हम उसकी मदद के बजे आगये बढ़ जाते है की कुआँ पोलिसे के चक्कर में पड़े और ऐसे न जाने कितने उदहारण…….
क्या हम सच में इश्वर के बनाई हुई सर्वोत्तम रचना हैं?
आज हम प्रांत के नाम पर दुसरे प्रांत के लोगों को बुरी तरह प्रताड़ित करते हैं, धर्म के नाम पर लोगों के जिंदा जला डालने में और उन्हें मार डालने भी नहीं हिचकते.
क्या हम सच में इश्वर के बनाई हुई सर्वोत्तम रचना हैं?
हम आज हिन्दू- मुसलमान, सिख इसाई , जैन, बौध, मराठी, मलयाली, पंजाबी बिहारी, सब कुछ तो हैं पर इंसान नहीं रह गए.
क्या हम सच में इश्वर के बनाई हुई सर्वोत्तम रचना हैं?
आखिर हम हैं क्या?
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